गुरु देवो भवः

Published on: 11 Sep 2023

गुरु देवो भवः

एक राहगीर की तरह वह अकेला ही निकल पड़ा था,

अपरिचित अंजान राहों में अकेला ही चल रहा था,

अंधकार की घातक ठंड थी, ज्ञानहीनता का यह परिणाम था,

वह बिना सोचे क्या होगा, बस निरंतर आगे चलता रहा।

 

आँखों में थी आस्था, मन में था विश्वास,

तनिक भी धूमिल हो न सका उसका कोई प्रयास,

फिर आया वह सूरज, पहले भी दिखाया था जिसने अपना रंग रीत,

अंधकार की छाया को दूर कर, लाया उजाला और आशा का संगीत ।

 

वह अज्ञान, उजाले सूरज की रौशनी में धुल गया,

दुख दर्द का साथ अब हमेशा के लिए छूट गया,

आ चुका था छत्र छाया में, जिस बूढ़े पीपल की छाँव में,

उस पेड़ से डर कर तो हर गम का सावन था रूठ गया।

 

खुशियों से भरा मन, शांति और सुख के जल उठे सब दिए,

आप ही हैं हमारे सूरज, आप ही हमारे शिक्षक प्रिये,

हरे भरे पेड़ -पौधो ने जो मिठास लायी थी,

आप ही के ज्ञान प्रकाश से, उन कलियों की खिलखिलाहट छाई थी।

 

शिक्षक हर समय हर पल हमारे साथ रहते हैं,

किताबों के ज्ञान से ज्यादा हमें जीवन का पाठ सिखाते हैं,

उनके द्वार सिखाई जाती है मानवता की महत्वपूर्ण सीख,

आओ हम सब मिल कर गाएँ उनके लिए कृतज्ञता के गीत।

 

ज्ञान की राहो में आपने हमें मार्ग दिखाया,

अज्ञान के अंधकार से आपने हमें बार-बार उबारा,

चुनौतियों से लड़ने की शक्ति हमे आपसे मिली,

आपने ही सपनों को सुनहरा रंग देना सिखाया।

 

हम हज़ार बार आभारी हैं आपकी कही हर बात के लिए,

आपके द्वार सिखाए गए जीवन के हर पाठ के लिए,

मेरा कोई लफ्ज़ आपकी एहमियत बयान नहीं कर सकता,

फिर भी लाख - शुक्रिया आपके हमारे इस साथ के लिए...

Sulabh Sharma, Class 11 A